Sunday, February 13, 2022

रूस-यूक्रेन संघर्ष

हाल ही में अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों में कहा गया है कि रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव इस क्षेत्र में एक बड़ा सुरक्षा संकट पैदा कर सकता है।

दोनों देशों के बीच कैसे शुरू हुआ तनाव?

- यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस के साथ लगती है. 1991 तक यूक्रेन सोवियत संघ का सदस्य था.  रूस और यूक्रेन के बीच तनाव 2013 से शुरू हुआ

1.  नवंबर 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया. यानुकोविच को रूस का समर्थन थाजबकि अमेरिका-ब्रिटेन प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे. फरवरी 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा

2.- इससे नाराज होकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. साथ ही वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया. अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. तब से ही रूस समर्थक अलगाववादियों और यूक्रेन की सेना के बीच लड़ाई चल रही है.

3.- क्रीमिया वही प्रायद्वीप है जिसे 1954 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे के तौर पर दिया था. 1991 में जब यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ तो कई बार क्रीमिया को लेकर दोनों के बीच तनातनी होती रही

4.- दोनों देशों के बीच शांति कराने के लिए पश्चिमी देश आगे आए. 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रूस-यूक्रेन के बीच शांति समझौता भी किया. इसमें संघर्ष विराम पर सहमति बनी.

5. शक्ति संतुलन: जब से यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ है, रूस और पश्चिम दोनों ने इस क्षेत्र में सत्ता संतुलन को अपने पक्ष में रखने के लिये लगातार संघर्ष किया है।  

6.पश्चिमी देशों के लिये बफर ज़ोन: अमेरिका और यूरोपीय संघ के लिये यूक्रेन रूस और पश्चिम के बीच एक महत्त्वपूर्ण बफर ज़ोन है।

7.रूस के साथ तनाव बढ़ने से अमेरिका और यूरोपीय संघ यूक्रेन को रूसी नियंत्रण से दूर रखने के लिये दृढ़ संकल्पित हैं।

8.‘काला सागरमें रूस की रुचिकाला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भूगोल रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।

सबसे पहले यह पूरे क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। 

काला सागर तक पहुँच सभी तटीय एवं पड़ोसी राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है।  

दूसरे, यह क्षेत्र माल एवं ऊर्जा के लिये एक महत्त्वपूर्ण पारगमन गलियारा है।

o    यूक्रेन की नाटो सदस्यतायूक्रेन ने उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) से गठबंधन में अपने देश की सदस्यता में तेज़ी लाने का आग्रह किया है।

·         रूस ने इस तरह के एक कदम को "रेड लाइन" घोषित कर दिया है और अमेरिका के नेतृत्त्व वाले सैन्य गठबंधनों तक इसकी पहुँच के परिणामों के बारे में चिंतित है।

·         काला सागर बुल्गारिया, जॉर्जिया, रोमानिया, रूस, तुर्की और यूक्रेन से घिरा है। ये सभी नाटो देश हैं।

·         नाटो देशों और रूस के बीच इस टकराव के कारण काला सागर सामरिक महत्त्व का क्षेत्र है और एक संभावित समुद्री फ्लैशपॉइंट है।

 

नाटो को लेकर पुतिन की नाराजगी क्यों?

सोवियत संघ का मुकाबला करने के लिए ही साल 1949 में नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन यानि नाटो की स्थापना की गई थी और उसके बाद नाटो गठबंधन में लिथुआनिया, एस्टोनिया और लातविया सहित 30 राष्ट्र शामिल हो गए हैं, जो सभी कभी सोवियत गणराज्य थे। संधि के अनुसार, अगर नाटो के सदस्यों में से किसी एक पर तीसरे पक्ष द्वारा हमला किया जाता है, तो पूरा गठबंधन उसकी रक्षा के लिए जुट जाएगा। क्रेमलिन चाहता है कि नाटो यह सुनिश्चित करे, कि यूक्रेन और जॉर्जिया (एक और पूर्व सोवियत गणराज्य) जिस पर रूस ने 2008 में आक्रमण किया था, नाटो गठबंधन में शामिल नहीं होंगे। बाडेन प्रशासन और नाटो भागीदारों का कहना है कि, यूक्रेन को नाटो में शामिल होने के फैसले को पुतिन रोक नहीं सकते हैं, लेकिन उनका ये भी कहना है कि, फिलहाल यूक्रेन को नाटो में शामिल करने का कोई इरादा नहीं

§  भारत का रुख

1. पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप को लेकर भारत निष्पक्ष बना हुआ है।

2. नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा की गई थी, जबकि इस मुद्दे पर पुराने सहयोगी रूस द्वारा समर्थन किया गया था।

 


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